भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एयरपोर्ट पर - 2 / रेखा राजवंशी
Kavita Kosh से
हवाई जहाज़ उड़ने में
कुछ समय शेष है
पर सच बन्धु
शेष तो बहत कुछ है
मेरा प्रेम, मेरी प्राथना
मेरी व्यथा, मेरी साधना
मेरा कर्म, मेरी भक्ति
मेरा श्रम, मेरी शक्ति
और इतने शेषों को
आँचल में लपेटे
कुछ अनकही बातों को
मन में समेटे
लो मैं चल दी
कांगारूं के देश की ओर।