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एलीना क़ुरैशी / नेहा नरुका

एलीना क़ुरैशी आज तुम हिज़ाब पहन कर कॉलेज़ आईं
याद है वो दिन ! जब तुम पहली बार आई थीं तो जींस-टॉप पहनकर आई थीं
तुमने कहा था, “मेम, मुझे आईपीएस बनना है ।”

मुझे कितनी ख़ुशी हुई थी यह जानकर कि तुम्हारे पापा तुम्हें पढ़ाने में रुचि रखते हैं
मैंने तुम्हारी मम्मी से बात की थी एक बार फ़ोन पर, और जाना वो तुम्हारी पढ़ाई को लेकर चिन्तित रहती हैं

तुम तब भी हिज़ाब पहनने वाली लड़कियों के साथ आती थीं
पर सबमें सबसे अलग था तुम्हारा आत्मविश्वास, तुम्हारी चहकती जवानी , तुम्हारी चमकती आँखें
उन आँखों से झाँकते सपने, तुम्हारी गूँजती हुई हंसी
एलीना क़ुरैशी, तुम सबसे सुन्दर हंसती थीं !

मगर आज तुम बहुत गम्भीर थीं
लगा जैसे तुमने हंसना बन्द कर दिया है
लगा जैसे तुम ख़बरें पढ़ने लगी हो
लगा जैसे तुम टीवी देखने लगी हो
लगा जैसे तुमने फ़ेसबुक पर कोई मज़हबी ग्रुप ज्वाइन कर लिया है
एलीना क़ुरैशी, तुम भी हिज़ाब पहनने लगी हो !

एलीना क़ुरैशी, मैं ‘अब्दुल्लाह हुसैन’ की किताब ‘उदास नस्लें’ पढ़ रही हूँ
मैं इस क़िताब को पढ़ते हुए, बस, तुम्हें देख रही हूँ
मेरे देखते ही देखते तुम असमय ही कितनी बूढ़ी होती जा रही हो, एलीना क़ुरैशी !
न जाने कौन-सा कम्बख़्त वज़न है जो तुम्हारे होंठों से चिपक कर बैठ गया है
काश ! तुम इस सियाह हिज़ाब के बारे में कोई टिप्पणी करतीं, एलीना क़ुरैशी !

हिन्दू शिक्षक कह रहे हैं, “एलीना का हिज़ाब-विवाद के बाद, हिज़ाब पहनना बताता है कि मुसलमान कितने कट्टर होते हैं ।”
एलीना क़ुरैशी, तुम्हें पता भी है कुछ
‘तुम्हें कट्टरपन्थी घोषित किया गया है’
और यह वाक्य लिखते हुए मेरा ब्लडप्रेशर लो हो रहा है ।

राजनीति बहुत क्रूर हो गई है
उसकी क्रूरता से बचने के लिए मैं भी पीछे की तरफ़ चल रही हूँ
तुम भी चल रही हो पीछे की तरफ़, एलीना क़ुरैशी !

राजनीत के बचाव-दवाब-जवाब में और कितना पीछे की तरफ़ चलना है हम दोनों को
तुम्हें अरब जाकर रेत पर लेटना है और
क्या मुझे भगवा पहनकर हवन-कुण्ड में बैठना है, एलीना क़ुरैशी ! ?

तुम्हें पुलिस में जाने से पहले और मुझे कविता लिखने के अलावा और क्या-क्या करना है, एलीना क़ुरैशी ! ?