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ऐसा तो नहीं / ईगर सिविरयानिन / अनिल जनविजय

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कहीं ऐसा तो नहीं
इसलिए तो तुम नहीं चली गईं
ताकि मेरी अन्तिम विदाई में तुम्हें आना न पड़े ?

मेरे इस सवाल का जवाब कौन दे ?
सिर्फ़ तुम ही दे सकती थीं
लेकिन तुम तो बेहद नाराज़ हो ...।

और अगर ऐसा नहीं है ?
कितनी उदासी है मेरे चारों ओर ...
संगमरमर की तरह सफ़ेद और सख़्त है दुख
कितना गहरा, पवित्र और प्रेरक !

चलो छोड़ो इसे, छोड़ें ये बात
हमारे बीच की ज़मीन टूट चुकी है —
अब उसके टुकड़े भी क़ीमती हैं ...।

कितनी उदासी फैली हुई है !

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
        Игорь Северянин
            А если нет

А если нет?.. А если ты ушла,
Чтоб не прийти ко мне на панихиды?
Кто даст ответ?

Одна лишь ты могла,
Но ты полна обиды…

А если нет?
Какая грусть… Как мраморна печаль…
Как высока, свята и вдохновенна!

Но пусть, но пусть.
Разбитая скрижаль —
Осколком драгоценна…

Какая грусть!