ऐसे भी रची जाती है कविता / शोभना 'श्याम'
सिर्फ शब्दों से ही नहीं
रची जाती कविता
वह रची जाती है
तिनकों से भी
उसे रचती है चिड़िया
जब बना रही होती है
अपना घोंसला...
तिनकों के ढेर से
कभी यहाँ, वहाँ से
चुन-चुन कर लाती है
एक-एक तिनका
कुछ होते हैं अस्वीकृत
कुछ गिर जाते हैं
बीच रस्ते
कुछ बिखर जाते हैं
घोंसले में लगते-लगते
और यूँ बनती है
घोेंसले की कविता
छंदमुक्त कविता...
कविता तब भी होती है
जब चीटियों की क़तार
गंध संकेतों के सहारे
निकलती है ढूँढने भोजन
उसी क़तार में लौटती है
ढोते हुए अपना आहार
अक़्सर बीच में आता है
कोई व्यवधान
एक क्षण को टूटती है क़तार
बिखर जाती है
घंटों की कमाई
दूसरे ही क्षण
ज़्ारा-सा घूमकर
फिर सरकने लगती हैं
पंक्तिबद्ध चीटियाँ...
कविता रचती हैं मधुमक्खियाँ भी
जब एकत्र करती हैं
मेहनत से पराग
गाते-गुनगुनाते लगाती हैं
अनगिनत चक्कर
फूलों से छत्ते तक
इस तरह बनता जाता है
गीत-सा शहद...