ऐसे ही जीकर देखेंगे
दुख को कर भीतर देखेंगे
आँखों में भर लेंगे हम तो
यह मामूली ख़ुशी कहीं भी
आँधी नहीं उड़ा सकती है
घास उगी तो उगी कहीं भी
बाहर बेचैनी कर देंगे
जन -जन को समरस कर देंगे
नींद नहीं है जिसको हासिल
मोरपंख उसके सिरहाने
परदे समेट खिड़की के
गाए हवा फ़सल के गाने
सीढ़ी दर सीढ़ी उतरेंगे
धूपों के आखर सिरजेंगे
थोड़ी सी उम्मीद बची है
फिर से कोयल भी कूकेगी
हरियाली का दामन थामे
राहों बीच हवा रोकेगी
पीतल के गहने दमकेंगे
अपने सारे सुख सँवरेंगे