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ओळूं रै औळावै / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
पळपळाट करती
गोटा किनारी में
लगा‘र फूंदा
दादी रो
बणायोड़ो बुगचो
कोनी फगत
मखाणा-मिसरी
अर खारक राखण रो
जुगाड़।
इण में
भर राखी है
जमा पूंजी
जूण रै
करड़ै-कंवळै दिनां री
ओळूं रै औळावै।