भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओस की बूंद / येव्गेनी येव्तुशेंको
Kavita Kosh से
ओस की बूंद है
व्यक्ति
और जनता बायकाल झील
मुझे तोड़ मत देना, ऎ रूस !
अपनी साइबेरियाई चट्टानों पर
तुमसे यही अपील