भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ सूरज / बालकृष्ण गर्ग
Kavita Kosh से
इस धरती के जीवन-दाता,
हो तुम ही पिता और माता।
टूटेगा कभी नहीं नाता,
युग-युग से यही चला आता।
ले धूप-ताप तुमसे धरती,
जीवन में मधुर रंग, भर्ती।
पाकर प्रकाश जगमग करती,
आए दिन रूप नया धरती।
ओ सूरज! दो ऐसा प्रकाश,
अज्ञान मिटे, हो दुख-नाश।
आशा से भर जाएँ निराश,
रोते चेहरों पर दिखे हास।
[रचना : 15 मई 1996]