औरतों की जेब क्यों नहीं होती / राग तेलंग
यह कुसूर सिर्फ़ उनके पहनावे से जुड़ा हुआ नहीं है
न ही इतना भर कहने से काम चलने वाला कि क्योंकि वे औरतें हैं
जवाब भले दिखता किसी के पास न हो मगर
इस बारे में सोचना ज़रूरी है
जल्दी सोचो!
क्या किया जाए
दिनों-दिन बदलते ज़माने की तेज़ रफ़्तार के दौर में
जब पेन मोबाइल आई-कार्ड लाइसेंस और पर्स रखने की ज़रूरत आ पड़ी है
जब-जब रोज़मर्रा के काम निपटाने
वे घरों से बाहर निकलने लगी हैं तब
अलस्सुबह छोड़ने आती हैं बस स्टॉप पर बच्चों को
तालीम के हथियार की धार तेज़ करने के वास्ते तब
जाना चाहती हैं सजकर बाहर
संवरती हुई दुनिया को देखने के लिए तब
उम्मीद की जाती है उनसे कि
घर के तमाम कामों को समय पर समेटने के बाद भी
दिखें बाहर के मोर्चे पर भी बदस्तूर तैनात
वह भी बिना जेब में हाथ डाले
और ऐसे वक्त में भी उनसे वही पुरातन उम्मीद कि
वे खोंसे रहें चाबियां या तो कटीली कमर में
या फ़िर वक्षों के बीचों-बीच फंसाकर
निभाती चलती रहें पुरखों के जमाने से चले आ रहे जंग लगे दस्तूर
दिल पे हाथ रखो और बताओ
ऐसे में क्या यह सिर्फ़ आधुनिक दर्जियों और
जेबकतरों का दायित्व है कि वे सोचें कि
औरतों की जेब क्यों नहीं होती ?
या फिर इस बारे में
हमें भी कुछ करने की ज़रूरत है ।