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औरत की ज़िन्दगी / रेणु हुसैन
Kavita Kosh से
एक ही धरती पर
एक ही आसमान के नीचे
एक से दो घर
इन्हीं दो घरों में
एक औरत करती है सफ़र।
एक घर में खिलती है
फैल जाती है
दूसरे में कैद होकर सिमट जाती है
एक औरत की ज़िन्दगी
इन्हीं के दरमियां कट जाती है