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औवल लगै / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
घोंसला जोॅ बनाबै तेॅ औवल लगै।
जब चिड़ैया जगाबै तेॅ औवल लगै।
सोहदा केॅ जे दै मसबरा ओकरे
लोटिया जब डुबाबै तेॅ औवल लगै।
रोज चाही मसाला जे अखबार केॅ
जों बिहैली गोसाबै तेॅ औवल लगै।
सब खबर बे-असर, बर्फ के ढेर पर
जों खबर केॅ धिपाबै तेॅ औवल लगै।
चोर के दागला सेॅ कहाँ फायदा
जों सिपाही दगाबै तेॅ औवल लगै।