भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कंगाल हो गये / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इतने बड़े सवाल हो गये।
उत्तर सब कंगाल हो गये।

कल तक जिनमें थी विनम्रता
आज वही विकराल हो गये।

कुछ तो मालामाल हो गये
कुछ के खस्ता हाल हो गये।

मेरी आँखें धवल हो गयीं
उनके काले बाल हो गये।

वैभव के सोपान सुनहरे
जीवन के जंजाल हो गये।

राजनीति के इस जादू में
कितने नये कमाल हो गये।

पेट पीठ का मेल हो रहा
सपने रोटी दाल हो गये।

कहाँ मेल के द्वार हुए हम
जहाँ हुए दीवाल हो गये।

दुश्मन से समझौते करते
अपने अपने काल हो गये।