भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कच्ची कविताओं के पक्के रंग / मृदुला सिंह
Kavita Kosh से
गली में खेलते बच्चों को
यह ध्यान नहीं होता कि
उनकी हरकतों को
दुनिया क्या कहेगी
कूदना
चिल्लाना
गिरना
उठना
रुलाई
हंसाई
इनके यही सब तो मिलाते हैं हमे
मनुष्य होने के आदिम छोर से
कंचे खेलते
गेंदों को उछालते
गिल्ली डंडे से बाते करते
बच्चों की आँखों में देखना
चमकते मिलेंगे चटक कत्थई रंग
उनमें देखना
नदी
पहाड़
जंगल
आकाश
तितलियाँ जो जानती हैं
उनका चुम्बन रखा है
लाल फूल पर
पूरी दुनिया के बच्चों का किल्लोल
एक जैसा होता है
चाहे वे जिस भी देश जाति
और धर्म के हों
वे फर्क जाहिर करनेवाले पन्ने नहीं हैं
और न ही उन पर लड़ने वाले हथियार
वे हैं धरती की कच्ची कविताएँ
आओ!
कोरा में भर ले दुनिया भर के बच्चों को
बचपन पर खतरे हैं बड़े
आओ छिपा लो उन्हें!