भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कड़ी जग्गा जमया ते मिलन वधाईयां / पंजाबी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जग्गा जमया ते मिलन वधाईयां,
के वड्डे हो के डाके डालदा, जगया,
के तुर परदेस गयों वे बुआ वजया,

-जग्गा, जमया ते मिलन वधाईयाँ,
माँ ने पिंड गुड वण्डया, जगया,
के तुर परदेस गयों वे बुआ वजया,

जग्गे मारया लैलपुर डाका,
के तारां खड़क गईयाँ आप्पे
तारीखां पुगतनगे तेरे माप्पे

-जे मैं जाणदी जग्गे मर जाणा,
मैं इक थाईं दो जणदी, जगया!
हाय टुट्टी होई माँ दे कलेजे छुरा वजया

-जग्गे जिन्दे नू सूली उत्ते टंगया,
ते भैण दा सुहाग चुमके, मखना,
के क्यों तुर चले गयों बेडा चखना,
 
-जग्गा मारया बोड दी छाँ ते,
के नौ मण रेत भिज गई, सूरना  !
हाय नईयाँ ने वड छड्या जग्गा सूरमा,

-चली दुक्खां दी अन्हेरी ऐसी,
के दीवे वाली लाट बुझ गई, चानना!
वे तेरे बिना मान कित्थे नहिंयों जानना?

- वे तू दुक्ख पुत्तराँ दा वेखें,
वे टूटे तेरा मान हाकमा, ढोल वे!
के गंगाजल विच क्यों दित्तइ जहर घोल वे,

-सानू शगणा दा कर दे लीरा,
के छड़ेयाँ दा पुन्न तोड़ दे, हाल नी!
के होणी खेड गयी, चाल नेरे नाळ नी,

-बारी खोल के यारी दी लाज रख लै,
मित्तरो! तेरे चन दी, नारे नी
देख तेनु सज्जन बुए ते वाजाँ मारे नी,

-लम्ब होकयाँ दे बल पए औंदे,
के खदरान नू अग्ग लग गई, हाय नी!
के भौर उड़ गये ते फुल कुम्ल्हाने नी.

-जग्गा, जमया ते मिलन वधाईयाँ,
जगया, के तुर परदेस गयों वे बुआ वजया,