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कथाक्रम / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
कुछ दिन पहले
शीशे में हीरे का भ्रम था
अच्छा ही हुआ उसे तोड़ दिया
यह भी एक कथाक्रम था
कुछ दिन पहले।
घुटनों जल की लहरों का नशा
दूर कहीं सो गया
गहरे इतिहास के समुन्दर में
खो गया
अच्छा ही हुआ
दो भूरे बालों के जन्मदिन
जितना जो डूब गया उतना ही
अर्थहीन श्रम था
कुछ दिनों पहले
मौसम के आँधी-पानी
दुश्मन है धूल के
कच्चे भूगोल के समीक्षक हैं
पक्के हैं ये उसूल के
अच्छा ही हुआ
छूट गया राह में कहीं
जो मुर्दा शब्दों को ढोता था
राजा विक्रम था
कुछ दिनों पहले।