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कथावाचिका / शचीन्द्र भटनागर

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रामकथा करने आई हैं
कथावाचिका मथुरावासी

वह उपवास-निरत रहती हैं
अन्न-त्याग का तप करती हैं
केले, सेब, अनार, आम हों
काजू, किशमिश हों, बादाम हों
दुग्ध संग में हो तो उत्तम
रहती हैं वह सदा उपासी
कथावाचिका मथुरावासी

गंगाजल से स्नान करेंगी
तदुपरान्त वह ध्यान करेंगी
जल में दूध-दही मिश्रित हो
पुष्पसार से वह सुरभित हो
ऐसा है व्यक्तित्व
कि लगती हैं पूनम की चन्द्रकला-सी
कथावाचिका मथुरावासी

एक पहर में
तीस मिनट की ही केवल वह
कथा सुनातीं
शेष समय में स्वर-लहरी से
हाव-भाव से रस बरसातीं
भीग-भीगकर जनता फिर भी
रह जाती प्यासी की प्यासी
कथावाचिका मथुरावासी

समझाती हैं -- कर्म तुम्हारे
ईश्वर आठों याम निरखता
कृपा-अनुग्रह से पहले
वह भक्तों की पात्रता परखता
फिर कहती हैं --
हुई आजकल दुनिया धन साधन की दासी
कथावाचिका मथुरावासी

धन-आभूषण
उन्हें भेंट में जब कोई देता श्रद्धा से
उसे ग्रहण कर मुस्काती हैं
वह आशीर्वाद-मुद्रा से
एक पहर सेवा को
उत्सुक रहते ऊँचे भवन-निवासी
कथावाचिका मथुरावासी ।