भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कथा झरी गेना के फूल से / परिचय दास
Kavita Kosh से
अडिग रही आपन आस्था आत्मदान में
मन मंदिर के घंटियन में गूंजी हमनी के प्रेम
दखनइया मलयानिल हिलोर लेई हमनी के प्रेम के स्वागत में
खुल जाई हृदय के पृष्ठ
आ कविगन हरियर कचनार धरती के बोलइहें
हमनी के राग भाव में।
सारंगा सदाबृज के कथा
झरी गेना के फूल से
झूम उठी सगरो पिरिथिमी
देरेदा* कs दर्शन आ
उत्तर आधुनिकता
हम दुनहुँन के निहरिहें टुकुर-टुकुर अलसाइल।
हमनी के प्रेम कुमार गंधर्व के स्वर लहरी बन जाई
चंडीदास आ आज के कविता के लय के मध्य
हम दूनों विचरन कइल जाई
हम दूनों प्रीति करत रहल जाई
हम दूनों प्रेमवे जीयत रहल जाई।