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कदम उठाने की हिम्मत कर / भावना जितेन्द्र ठाकर
Kavita Kosh से
बुलंदियों को छूना आसान नहीं,
सही में ज़िंदगी का सफ़र उन्हीं का शुरू होता है
जो कदम उठाने की हिम्मत रखता है।
संभावनाओं के आसमान पर हौसलों की उड़ान जो भरता है,
उसीका सितारा आफ़ताब की रोशनी
के आगे भी झिलमिलाता नज़र आता है।
रात के भी मौसम आते है ज़िंदगी में,
जूझते तमस की तिलमिलाहट में
जो साहस का रंग भरता है
उसीको नवभोर का दर्शन होता है।
कालखंड के भीतर क्या छुपा है नहीं जानता कोई,
कुरेदकर ज़िंदगी की ज़मीं जो कुंदन निकालता है,
उसीकी लकीरों में सुकून का मोती झिलमिलाता है।
आलस्य की क्षितिज पर बैठे
सफ़लता का इंतज़ार करके जो बैठे रहे,
उसकी मंज़िल के दरवाज़े कहाँ खुल पाते है,
मेहनत की सीढ़ी चढ़ते पसीजने वालों के ही सितारे बुलंद होते है।