77
कन्या पूजन कर रहे,नौ दिन देखो खूब।
भ्रूण गिराते बेहिचक, पुत्र मोह में डूब।।
78
रोटी, कपड़ा और छत,नारी जीवन मोल।
नारी मन की बात है, सदियों से बेमोल।।
79
अग्निपरीक्षा दी मगर,मिली न सुख की छाँव।
नारी मन की पीर को, समझा नगर न गाँव।।
80
नारी पर लादे सभी, सारे नियम- विधान।
अपनी सुविधा से रचे, पोथी-शास्त्र-पुराण।।
81
हाड़- तोड़ श्रम कर रहे, सहें शीत और घाम।
तंग हाल फिर भी रहें, कठिन किसानी काम।।
82
मन के आगे विवश सब,मन हैं दुख का मूल।
मन पंछी उड़ता फिरे, आगा-पीछा भूल।।
83
मन की ऊँची है उड़न, मन के पंख अनंत।
मन से पार न पा सके, योगी हों या संत।।
84
दीन- धर्म को भूलकर, करते लूट-खसोट।
होते खोटे काम भी, अब डंके की चोट।।
85
माटी का दीपक बना, प्राणों की है ज्योति।
अंगदान कर दें जगा, दूजी जीवन ज्योति।।
86
अब तो हीरा आँकता, खुद ही अपना मोल।
निज गुण गाथा गा रहा,ऊँचे- ऊँचे बोल।।
87
मिलन खुमारी थी चढ़ी,अलसाए थे नैन।
झकझोरा दुर्दैव ने, स्वप्न झरे बेचैन।।
88
मीठा -मीठा बोलकर, दे दी गहरी चोट।
शब्द आवरण में छिपी, मन की सारी खोट।।
89
नर ने खोदी आप ही, खाई अपने हाथ।
धरती दोहन में लगा,मचा रहा उत्पात।।
90
प्यासे पंछी फिर रहे, पानी को बेहाल।
ताल- तलैयों की जगह, कंक्रीटों का जाल।।
91
कमी और की खोज कर, मिलती खुशी अपार।
अपनी बारी देख कर, बन जाते अंगार।।
92
कल की कल पर छोड़ दे,व्यर्थ विकल मन आज।
सही समय पर ही बनें,सारे बिगड़े काज। ।
93
सारस बैठा खेत में,भीगी नैनन कोर।
व्यथित हृदय की आह से,गूँजें अंबर छोर।।
94
सारस बैठा खेत में,बिछड़ गया मनमीत।
सहता पीर वियोग की,करे न दूजी प्रीत।।
95
पंख पसारे गगन में,उड़ते विहग हजार।
अपने-अपने में मगन,नहीं ठानते रार।।
96
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, नभ में उड़ता यान।
पंछी आड़े आ करे, चूर -चूर अभिमान।।
97
पत्थर की क्या बात है,पात सके ना डोल।
उसकी मर्जी के बिना,कौन सका पर खोल।।
98
मन वीणा में बज रहा, तेरा ही संगीत।
सुन ले आकर तू ज़रा, ओ मेरे मनमीत।।
99
माघ नहा कर जाऊँगी, कहती ठंडक साफ।
वृद्धजनों बचकर रहो, बैठो ओढ़ लिहाफ।।
100
पाला कोहरा गलन ही, हैं मेरे हथियार।।
सर्द हवाओं से करूँ, मैं चौतरफा वार।।
101
गली- गली ठेके खुले, खुल गये हुक्का बार।
चार यार मिलकर करें, चौराहे गुलजार।।
102
बेटी जाती है कहाँ,रखते इसका ध्यान।
बेटा कब किससे मिला, लेते न संज्ञान। ।
103
कितने दिन जिंदा रहे, गणना है बेकार।
वीरों के इतिहास को, नमन करे संसार।।
104
बंधन बस एक प्रेम का, मन करता स्वीकार।
बहना को मिलता रहे, भाई का नित प्यार।।
105
प्यार और सम्मान का,नहीं कोई है मोल।
जो देते आशीष ये, वे भी हैं अनमोल।।