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कबूतर लौटकर नभ से / जगदीश पंकज
Kavita Kosh से
कबूतर लौटकर नभ से सहमकर बुदबुदाते हैं
वहाँ पर भी किसी बारूद का
षड़यन्त्र जारी है
हवा में भी
बिछाया जा रहा घातक सुरंगों को
धरा से व्योम तक पहुँचा रहे
कुछ लोग जंगों को
गगन में गन्ध फैली है किसी नाभिक रसायन की
धरा पर दीखती विध्वंस की
व्यापक तैयारी है
वहाँ पर शान्ति,
सह-अस्तित्व जैसे शब्द बौने हैं
यहाँ पर सभ्यता के हाथ
एटम के खिलौने हैं
वहाँ से पंचशीलों में लगा घुन साफ़ दिखता है
मिसाइल के बटन से जुड़ गई
क़िस्मत हमारी है
शान्ति की आस्थाओं
को चलो व्यापक समर्थन दें
युद्ध से जल रही भू को
नया उद्दाम जीवन दें
किसी हिरोशिमा की फिर कहीं न राख बन जाए
युद्ध तो युद्ध केवल युद्ध है
विध्वंसकारी है