भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कब के भये बैरागी कबीर जी / निमाड़ी
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
कब के भये बैरागी कबीर जी,
कब के भये बैरागी
आदि अंत से आएँ गोरख जी,
जब के भये बैरागी
(१) जल्मी नही रे जब का जलम हमारा,
नही कोई जल्मी को जायो
पाव धरण को धरती नही थी
आदी अंत लव लागी...
कबीर जी...
(२) धुन्दाकार था ऐ जग मेरा,
वही गुरु न वही चेला
जब से हमने मुंड मुंडायाँ
आप ही आये अकेला...
कबीर जी...
(३) सतयुग पेरी पाव पवड़ियाँ,
द्वापूर लीयाँ खड़ाऊ
त्रैतायुग म अड़ बंद कसियाँ
कलू म फिरीयाँ नव खंडा…..
कबीर जी...
(४) राम भया जब टोपी सिलाई,
गोरख भया जब टीका
जब से गया हो जलम फेरा
ब्रम्हा मे सुरत लगाई...
कबीर जी...