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कभी ख़्वाब में आपसे बात की / रंजना वर्मा

कभी ख़्वाब में आपसे बात की
नजर ने नजर से मुलाकात की

लगायें किसी पर न बन्दिश कोई
नहीं होती हद कोई जज़्बात की
 
जरूरत पे कोई अगर साथ दे
खबर दो उसे अपने हालात की

सँभाले धड़कता हुआ दिल अगर
उसे कद्र है तेरे नगमात की
 
तुम्हें सौंप दी अपनी तकदीर तो
करें फ़िक्र क्या जीत या मात की
 
उतर झील में चाँद है छिप रहा
न हो भूल ये चाँदनी रात की
 
विरह कल्पना से लगी काँपने
सुबह रात ने ओस बरसात की