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कमाल की औरतें २९ / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
जब सूखी नदियों का आंचल
भीग जाने को तरसेगा
सूखे कुओं की जीभ चटक जाएगी
प्यास बुझ नहीं पाएगी
गहरी झीलों से खो जायेगा पानी
तेज चीखें हवाओं को बेचैन करेंगी
नींद रात की गोद में जाते ही
हार जायेगी
तकलीफों के शोर से
कुनमुनाते रहेंगे नवजात
मां की लोरियों में एक प्रार्थना तड़प जायेगी
तब...समय बहरा हो जायेगा
जख्म गहरा और गहरा हो जायेगा
बिसूरते पेड़ का आखिरी पत्ता
डगमगा कर टूट जाएगा
तब एक लड़की अंजलि भर जल लेकर
सूरज से आंख मिलाएगी
वो अकेली ख़त्म होती सृष्टि को बचाएगी।