भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कम होती चीज़ें / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कम हो रही हैं
कुछ वस्तुएँ
मिरजई-बसूला
करधन-बिछुए
खड़ाऊँ-दातुन
पीतल का लोटा...

कम हो रहे हैं
कुछ नाम
कुम्हारा-ठठेरा
भड़भूजा-मदारी

कम हो रहे हैं
कुछ अनाज
टांगुन-साँवा-कोदो
तीसी-जौ-बाजरा

कम हो रहे हैं
कुछ पक्षी
गिद्ध-चील
चमगादड़-कौए

नहीं सुनाई देते
मौसम कवि घाघ के दोहे
भड्ड्री के रोपनी गीत
दाँत दाने बर्रे के...

बच्चों के सपनों से
गायब हो चला है
नानी का उड़न-खटोला
दादी का काठ का नीला घोडा़
बोलने वाला तोता
राक्षस-लाल परी

भूल चूका है बचपन
नरकट और सरकण्डे की कलम
जामुन के छाल की स्याही
बबूल के लासे का गोंद
और गुल्ली-डंडा
कबड्डी

ओल्हा-पाती
गेना भड़भड़
अब नहीं गाते गाडी़वान
जाडे़ की रात में
मार्मिक लय में
सोरठी वृजभार...
बिरहा-फगुआ-चैता

सुनने को
तरस जाते हैं कान
सच...
कितना सिकुड़कर रह गया है
हमारा अपना संसार।