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कय सै आबै लगहर / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विवाह-संस्कार के लिए विभिन्न चीजों को एकत्र करने, माँ दुर्गा का पाँचों बहनों के साथ आने, उनके सम्मुख सभी चीजों को रखने, सभी बहनों को यज्ञ में सहायक होने तथा निर्विघ्न यज्ञ-समाप्ति के निमित्त उनसे प्रार्थना किये जाने का उल्लेख इस गीत में हुआ है।

कय<ref>कितना</ref> सै<ref>सौ</ref> आबै<ref>आता है</ref> लगहर<ref>एक प्रकार का दीयट-सहित दीपक; मिट्टी का एक गोलाकार कुछ ऊँचा एक प्रकार का आधार बनाया जाता है, जिसके ऊपर दीपक रहता है</ref>, कय सै आबै पुरहर<ref>कलश के ऊपर रखा जाने वाला पूर्णपात्र; जिसमें अरवा चावल या जौ भरा रहता है, द्वार-कलश</ref>।
कय बहिनों हे आबै दुरगा देबी, आगु भय हे देबी जग<ref>यज्ञ</ref> करब हे॥1॥
पाँच सै आबै लगहर, पचीस सै आबै पुरहर।
पाँच बहिनों हे आबै हे दुरगा देबी, आगु भय हे देबी जग करब हे॥2॥
कहँमहिं राखब लगहर, कहँमहिं राखब पुरहर।
कहँमहिं राखब हे दुरगा देबी, आगु भय हे देबी जग करब हे॥3॥
मड़बाहिं<ref>मंडप पर</ref> राखब लगहर, कोहबर राखब पुरहर।
गहबर<ref>देवस्थान; गह्वर</ref> घर राखब हे दुरगा देबी, आगु भय हे देबी जग करब हे॥4॥
कथि लय<ref>क्या लेकर</ref> समदब<ref>मनाऊँगा; सम्मान करूँगा; संतोष दूँगा</ref> लगहर, कथि लय समदब पुरहर।
कथि लय समदब हे दुरगा देबी, आगु भय हे देबी जग करब हे॥5॥
पान लय समदब लगहर, फूल लय समदब पुरहर।
लड्डू लय समदब हे दुरगा देबी, आगु भय हे देबी जग करब हे॥6॥

शब्दार्थ
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