भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करकी बदरिया / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
झिम-झिम बरसाय करकी बदरिया,
भावय नञ बिन पिया अटरिया।
पुरबा जगवय सुतल सपनमा,
ताकय रह-रह रहिया नयनमा,
बेकल प्यासल सांस नजरिया !
फुही भिंजवय झाँझर अँचरबा,
बह गेल अँसुअन संग कजरबा
कोरी मोरी देह चुनरिया।।
अँगना उदास देहरी जागल,
अधरतिये उठ चौंकय पायल,
बिसरल निपट-निठुर साँवरिया !