मैं
आदम और हव्वा के
अनुभव के पश्चात की
पाँचवी अनुभूति
करुणा ।
मैं
एक भी ऋतुस्राव को
व्यर्थ न गँवाकर
निरन्तर फलने वाली
कोख ।
मै
पाँच-पाँच पतियों को
सिर्फ़ पुत्र ही
प्रदान करती हुई
एक-वचना मैं ।
मैं
नियोग के लिए
आतुर
नपुंसक पति की
एकनिष्ठ पत्नी ।
मैं
हर दिन एक ही एक खेल
बिना थके खेलती
बनती हूँ अभिसारिका
पेट की ख़ातिर ।
मैं
सोलह सावन का पुण्य
बटोरकर
जलती हुई सती
मैं ।
मैं
रौंदती हर छह माह में
अपनी ही कोख का अंश
इसलिए कि
नहीं है पुरुष वह।
मूल मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा