भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कर जोरी पूछेली जात के भीलीनियाँ / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
कर जोरी पूछेली जात के भीलीनियाँ से
हमरा के छोड़िके कहाँ जइबऽ हो लाल।
बटिया जोहत मोर अंखिया पिरइली से
एकटक लागेला नजरिया हो ला।
भूलिहों ना राम जी कबहीं तोरी सुरतिया से
भूलिहें ना कोमल चरनियाँ हो लाल।
लाज मोरा लागे राम जी जात के भीलिनिया से
कइसे के भइलें पहुनइया हो लाल।
कहत महेन्द्र राम जी भगती के भूखल से
सेवरी का साँचे मिलि गइलें हो लाल।