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कविता-दू / गंग नहौन / निशाकर
Kavita Kosh से
कविता
चोरबैत अछि
युवतीक ठोरक लाली
गजराक सुगन्धि
आ गजगामिनीक चालि।
कविता
सुनैत अछि
मन्दिरक घण्टी
मस्जिदक अजान।
कविता
हेरैत अछि
बूढ़ाक नीरव दिनचर्या
बढ़बैत अछि
आत्मबल।
कविता
देखैत अछि
मनुक्ख-मनुक्खक बीच
ढ़हैत
सम्बन्धक देवालकें
बदलल
मनोभावकें!
कविता
करैत अछि विरोध
फैशनक नाम पर
उधिआएल
समलैंगिकता आ अप्राकृतिक मैथुनक।