कविता की भूमि / राखी सिंह
मुझे दस कविताएँ लिखने को कहा गया है
नई, ताजी दस कविताएँ।
उस प्रकाशक की शर्त है
कविताएँ पूर्णतः अप्रकाशित होनी चाहिए
दस कविताएँ!
शायद दस साल लग जाये मुझे
या क्षण भर में तैयार हो जाये दस कविताओं की भूमि
उन्होंने कहा-मन स्थिर करके बैठ जाएँ, लिख लेंगी।
कैसे समझाऊँ,
स्थिर मन? यानी कोई हलचल नहीं?
और लिख ली जाएंगी कवितायें? मेरे लिए ये परिहास की बात है बंधु!
मन जिस वेग से चलायमान होगा
मस्तिष्क में उतने ही कविताओं के बीज गिरेंगे
हाँ, मैं मन को
नाचने, गिरने, टूटने और सुबकने के साधन के विषय पर ग़ौर कर सकती हूँ
मुझे याद आया, किसी ने या
शायद मैने ही कहा था एक बार
कि एक प्रेम का हासिल है
एक साबुत इंसान के चंद रुआँसे खण्ड
हर खण्ड से निकली कुछ रोचक प्रतिक्रियाएँ
खंडित हृदय कविता की शरण लगता है
पंत जी ने भी तो कहा है-
निकल कर आंखों से चुपचाप,
बही होगी कविता अनजान।
हालांकि ये प्रेम और कविता दोनो के साथ
बरता गया बेहद ओछा वर्ताव होगा, फिर भी
कुछ नई कविताओं के प्रजनन के लिए
कवि और एक नए प्रेम का समागम
इतना बुरा भी नहीं!