भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता की रंगशाला / बेल्ला अख़्मअदूलिना / वरयाम सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अद्भुत है यह रंगशाला कविता की!
ढँक लो अपने को इस निद्रालु मखमल में,
मैं कौन होती हूँ यहाँ, यह तो विलक्षण प्रतिभा
जुटी है किन्‍हीं दूसरे देवताओं के काम में।

मैं तो बस गँवार हूँ जिसे बुलाया गया है बाहर से
इस पराये काम को पूरा करने के लिए,
मुझे कोई इच्‍छा नहीं!
पर तारों के पीछे दूर कहीं
अपने हाथों में संगीत निर्देशक ले चुका है डरावनी छड़ी।

अद्भुत्त है यह रंगशाला कविता की,
हमें तय करना है क्‍या–कौन-सा संगीत सुनाएँगे आज ?
हमारे संगीत का यह आततायी प्रेमी
सुनता नहीं निर्देश किसी भी तरह के ।

क्‍या आदेश दे रहा है वह ?
कहीं है क्‍या कोई उपाय
उसके हिंस्र प्रेम से बच निकलने का ?
अनपढ़ों को यह अलौकिक निष्‍पाप प्रतिभा
किस तरह से दे रही आदेश !

अद्भुत है यह रंगशाला कविता की,
कोई नहीं यहाँ जिससे पूछूँ। जवाब के बदले
मिलती है यंत्रणा जब रोने के लिए मुँह
और बोलने के लिए खुलते हैं होंठ।

नि:संदेह, दीये छिपा नहीं पाते आग,
विदा लेती हूँ ईश्‍वर के इस जुए से,
संक्षेप में-जीवन और मृत्‍यु
खेल चुके हैं कविता का यह अद्भुत नाटक।

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए
               Белла Ахмадулина
       Стихотворения чудный театр

Стихотворения чудный театр,
нежься и кутайся в бархат дремотный.
Я ни при чем, это занят работой
чуждых божеств несравненный талант.

Я лишь простак, что извне приглашен
для сотворенья стороннего действа.
Я не хочу! Но меж звездами где-то
грозную палочку взял дирижер.

Стихотворения чудный театр,
нам ли решать, что сегодня сыграем?
Глух к наставленьям и недосягаем
в музыку нашу влюбленный тиран.

Что он диктует? И есть ли навес -
нас упасти от любви его лютой?
Как помыкает безграмотной лютней
безукоризненный гений небес!

Стихотворения чудный театр,
некого спрашивать: вместо ответа -
мука, когда раздирают отверстья
труб - для рыданья и губ - для тирад.

Кончено! Лампы огня не таят.
Вольно! Прощаюсь с божественным игом.
Вкратце - всей жизнью и смертью - разыгран
стихотворения чудный театр.