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कविता के विचारवान होने ने / अम्बिका दत्त
Kavita Kosh से
लगता है कविता के विचारवान होने ने
मुझे निचोड़ दिया है
तभी तो
मैंने रसमयी कविता लिखना छोड़ दिया है
अब मुझे कहाँ दिखाई देती है
बच्चों के चेहरे की निश्छल मुस्कान
मैं तो उनके शरीर में उतरकर
उनकी पसलियाँ गिनना चाहता हूं
उनके बस्तों में रखे
उनके दिमाग को पढ़ना चाहता हूं
गो उनसे, उनका बचपन
छीनना चाहता हूं
न जाने तुम किसकी आंख से चुरा लाते हो
सांझ के रंग का सिंदूरी काजल
मेरी आँखों ने मोर पंख भी चुनने चाहे
तो पलकों पर आलपिनें उग आई
बेशक यह उनके तूफान में गीत गाने की उमर है
मैं उनके लिये कोई गीत नहीं लिख पाता
मैं तो सिर्फ ठगा सा देख रहा हूं
उस तूफान को
जो उन्हें उलटकर रख देगा
उन सबके सप्लीमेन्ट्री आएगी
उन सब परीक्षाओं में
जो वे देंगे
जीवन भर ।