भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता भी दीप जलायेगी / शिवदेव शर्मा 'पथिक'
Kavita Kosh से
इस साल दिवाली में कवि की कविता भी दीप जलायेगी
वह नयी डगर के नये मोड़ पर हर मानव को लायेगी!
यह दीप-पर्व तो एक रात का खेल नहीं, त्यौहार नहीं
थपकियाँ लहर की खा-खाकर यदि टूट गयी, पतवार नहीं
दीपक तो वह जिसकी लौ से बनता है अंजन आँधी का
जिसमे ताक़त हो नेहरु की, स्वर गौतम का, वर गाँधी का।
अंगार नहीं, शीतलता की चाँदनी प्राण पर छायेगी
इस साल दिवाली में कवि की कविता भी दीप जलायेगी!
इस वर्ष दीवाली में किसका मन गुमसुम या चुपचाप रहा-
जब सन्त विनोबा वामन की धरती को पग से माप रहा!
बँध रहे बाँध के बाँध यहाँ-सागर की सीमा बोल रही
अब वीर भगत की मिट्टी पर गेंहू की पत्ती डोल रही।
सर्वोदय-धारा मानव का बंजर मनखेत पटायेगी
इस साल दिवाली में कवि की कविता भी दीप जलायेगी!