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कवि अज्ञानी / एन सेक्सटन / अनिल जनविजय

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शायद पृथ्वी तैर रही है,
मुझे मालूम नहीं ।
शायद एक विशाल कैंची से काट-काटकर
बनाए गए हैं नन्हें सितारे
मुझे नहीं मालूम ।
शायद चान्द एक जमा हुआ आँसू है
मुझे नहीं मालूम ।
शायद ईश्वर एक गहरी आवाज़ है,
जिसे सुना है बहरों ने
मुझे नहीं मालूम ।

शायद मैं कोई नहीं हूँ
सच तो यह है कि मैं एक शरीर हूँ
और मैं इससे बच नहीं सकती ।
मैं चाहूँगी कि उड़ूँ मैं अपने सिर के ऊपर से
लेकिन सवाल इस बारे में नहीं है ।
मेरे भाग्य के पटल पर यही लिखा है
कि मैं यहाँ फँस जाऊँगी मानव के रूप में ।
ऐसा ही हो रहा है
मैं अपने इस मसले की ओर ध्यान दिलाना चाहूँगी ।

मेरे भीतर एक जानवर बैठा है
एक विशाल केकड़ा
जो तेज़ी से भींच रहा है मेरे दिल को ।
बोस्टन के डॉक्टरों ने
अपनी सभी कोशिशें छोड़ दी हैं
उन्होंने शल्य-ब्लेड, सुइयों, ज़हर और गैसों का
इस्तेमाल किया
उन्होंने हर उस चीज़ का इस्तेमाल करने की कोशिश की
जो उन्हें पसन्द आई
लेकिन केकड़ा वहीं बना रहा ।
वह बेहद भारी है
मैं उसे भूलने की कोशिश करके
अपने काम में डूब जाती हूँ ।

मैं गोभी की सब्ज़ी पकाती हूँ
किताबों को खोलती हूँ और फिर बन्द कर देती हूँ
मैं अपने दाँत साफ़ करती हूँ
और अपने जूतों के फीते बान्धती हूँ
मैं प्रार्थना करती हूँ
लेकिन जब मैं प्रार्थना करती हूँ
तो केकड़े की पकड़ और सख़्त हो जाती है
और दर्द बहुत बढ़ जाता है ।

मैंने एक बार एक सपना देखा था
शायद वह सपना ही था
कि वह केकड़ा
ईश्वर से मेरी बेख़बरी है
लेकिन सपनों पर विश्वास करके
मुझे क्या मिलेगा ?

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
            Anne Sexton
      The Poet of Ignorance

Perhaps the earth is floating,
I do not know.
Perhaps the stars are little paper cutups
made by some giant scissors,
I do not know.
Perhaps the moon is a frozen tear,
I do not know.
Perhaps God is only a deep voice,
heard by the deaf,
I do not know.

Perhaps I am no one.
True, I have a body
and I cannot escape from it.
I would like to fly out of my head,
but that is out of the question.
It is written on the tablet of destiny
that I am stuck here in this human form.
That being the case
I would like to call attention to my problem.

There is an animal inside me,
clutching fast to my heart,
a huge crab.
The doctors of Boston
have thrown up their hands.
They have tried scalpels,
needles, poison gases and the like.
The crab remains.
It is a great weight.
I try to forget it, go about my business,

cook the broccoli, open and shut books,
brush my teeth and tie my shoes.
I have tried prayer
but as I pray the crab grips harder
and the pain enlarges.

I had a dream once,
perhaps it was a dream,
that the crab was my ignorance of God.
But who am I to believe in dreams?