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कस्तालिया का झरना / अज्ञेय
Kavita Kosh से
चिनारों की ओट से
सुरसुराता सरकता
झरने का पानी।
अरे जा! चुप नहीं रहा जाता तो
चाहे जिस से कह दे, जा,
सारी कहानी।
पतझर ने कब की ढँक दी है
धरा की गोद-सी वह ढाल जहाँ
हम ने की थी मनमानी
अक्टूबर, 1969
कस्तालिया : पार्नासस पर्वत की दक्षिणी उपत्यका में देल्फी के निकट एक झरना, जो अपोलो और कला-देवताओं का तीर्थ माना जाता था