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कहाँ हार कर जा रहा है / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
कहाँ हार कर जा रहा है दिवाने
हैं कितने अभी इम्तिहाँ, कौन जाने
कभी साथ चलने का वादा किया था
तो क्यों साथ अब छोड़ने के बहाने
भरोसा था दोनों का इक दूसरे पर
ग़लतफहमियाँ आईं कैसे न जाने ?
चमन छोड़ कर जा रहे हैं परिंदे
ख़बर है जलेंगे यहाँ आशियाने
सहर से हुई दोपहर अब तो ‘देवी’
कहाँ शाम होगी ये भगवान जाने