कहावतें / घाघ
उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान ।1।
खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै ।2।
उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो सँग रहा ।3।
जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी ।4।
खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।5।
गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै।6।
सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै।7।
गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।8।
वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा ।9।
छोड़ै खाद जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई ।10।
सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी
जो पचास का सौ न तुलै, देव घाघ को गारी ।11।
सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।12।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।13।
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।14।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।15।
पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।16।
आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।17।
पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।18।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।19।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।20।
सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।21।
असुनी नलिया अन्त विनासै।
गली रेवती जल को नासै।22।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।
कृतिका बरसै अन्त बहूतो।२३।
आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत।
नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत।24।
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।25।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।26।
खनिके काटै घनै मोरावै।
तव बरदा के दाम सुलावै।27।
हस्त बरस चित्रा मंडराय।
घर बैठे किसान सुख पाए।28।
हथिया पोछि ढोलावै।
घर बैठे गेहूं पावै।29।
जब बरखा चित्रा में होय।
सगरी खेती जावे खोय।30।
जो बरसे पुनर्वसु स्वाती।
चरखा चलै न बोलै तांती।31
जो कहुं मग्घा बरसै जल।
सब नाजों में होगा फल।32।
जब बरसेगा उत्तरा।
नाज न खावै कुत्तरा।33।
दसै असाढ़ी कृष्ण की, मंगल रोहिनी होय।
सस्ता धान बिकाइ हैं, हाथ न छुइहै कोय।34।
असाढ़ मास आठें अंधियारी।
जो निकले बादर जल धारी।35।
चन्दा निकले बादर फोड़।
साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।36।
असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।37।
रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर।
एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।38।
गहिर न जोतै बोवै धान।
सो घर कोठिला भरै किसान।39।
गेहूं भवा काहें।
असाढ़ के दुइ बाहें।।
गेहूं भवा काहें।
सोलह बाहें नौ गाहें।।
गेहूं भवा काहें।
सोलह दायं बाहें।।
गेहूं भवा काहें।
कातिक के चौबाहें।40।
गेहूं बाहें।
धान बिदाहें।41।
गेहूं मटर सरसी।
औ जौ कुरसी।42।
गेहूं बाहा, धान गाहा।
ऊख गोड़ाई से है आहा।43।
गेहूं बाहें, चना दलाये।
धान गाहें, मक्का निराये।
ऊख कसाये।44
पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।45।
पुरुवा में जिनि रोपो भैया।
एक धान में सोलह पैया।46।
कन्या धान मीनै जौ।
जहां चाहै तहंवै लौ।47।
कुलिहर भदई बोओ यार।
तब चिउरा की होय बहार।48।
आंक से कोदो, नीम जवा।
गाड़र गेहूं बेर चना।49।
आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।50।
आद्रा बरसे पुनर्वसु जाय,
दीन अन्न कोऊ न खाय।51।
आस-पास रबी बीच में खरीफ।
नोन-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।52।