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क़िताब के अँधेरे में लगातार / उदयन वाजपेयी

क़िताब के अँधेरे में लगातार
बीत रही हैं कुछ ज़िन्दगियाँ

हरी घास में अपनी तेज़ दौड़ में
घुल रहा है एक सुनहला कुत्ता

वह बिस्तर पर लेटी है
उसका एक पाँव दूसरे पाँव पर रखा है
हाथों में खुली क़िताब के हर दो शब्दों के बीच
वह सबसे आँख बचाकर
लगातार खोज रही है एक पारदर्शी

प्रेम वाक्य !