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कातर है / पारुल पुखराज
Kavita Kosh से
कातर है
नींद के आले में
भूखा कबूतर
दीमक
निशब्द कुतरती
चौखट
सपनों की
रात के अन्तिम
प्रहर
विरक्त आत्मा
निर्वाण
पथ निहारती
कहीं