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कामुकों का गाँव बेवा का शबाब / विनोद तिवारी
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कामुकों का गाँव बेवा का शबाब
क्या सफ़ाई आपको अब दें जनाब
झूठ हर मौसम में फलता-फूलता
और सच का हर समय ख़ाना ख़राब
जिसने जब चाहा बजाया चल दिया
ज़िंदगी अपनी थी ग़ैरों का रबाब
आँधियों का ज़ोर तिनकों का वहम
कह रहे हैं हम करेंगे इन्क़लाब
वह कँटीली झाड़ियों का गुल्म था
हमने सोचा था वहाँ होंगे गुलाब