भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काम वाली बाई / भास्कर चौधुरी
Kavita Kosh से
तुम आई तो
खिल उठा माँ का चेहरा
पिता ने ली लम्बी गहरी साँस
तुम जैसी-
माँ की सगी
और मैं मेहमान दिन भर का...