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कारगुजारियां / अनिल विभाकर
Kavita Kosh से
सेंध सब जगह लगी है
दो-एक जगह बची होगी
तो देर-सबेर वहां भी लग जाएगी
दूब पर बैठी तितली और वह तड़पने लगी
फीका पड़ गया उसका रंग
फूल पर बैठी तितली
और वह गश खा गई कीटनाशक की तेज़ गंध से
बच्चे ने पिया बाज़ार का दूध
और सूज गई उसकी आंत
चढ़ आया बुखार
डॉक्टर ने दी दवा उससे भी कोई फायदा नहीं
वह भी निकली नकली
किस-किस पर करें शक
किस-किस पर करें भरोसा
दूब हो या फूल या गाय
कैसे मढ़ें इन पर दोष
खुद तो नहीं बनती दवा भी
सत्तू हो या नमक
चाय हो या तेल
साबुन-सोडा कुछ भी हो
सेंध लगी मिलेगी सब जगह भरोसे पर
कहीं कोई उजड़ रहा है
कहीं कोई मर रहा है
दौलत की इस अंधी दौड़ में ये कारगुजारियां
हम आप में से ही तो कोई कर रहा है।