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कारी सागरमे डूबल सुरूज-किरिन / ललितेश मिश्र
Kavita Kosh से
कारी सागरमे डूबि गेल अछि
सुरूज किरिन
पसरि गेल चतुर्दिक अन्हार
अन्हार ! आदिम अन्हार !!
च‘र-चाँचर सभतरि
पसरल जाइछ हाहाकार।
जाति-उपजातिमे वर्गीकृत
हेंजक हेंज मनुक्ख
आ’ हेंजक हेंज चिड़ै-चुनमुनी
सन्धानि रहल अछि बाट
एकहि गाछ ओ एकहि डारि पर
एकहि रागमे, एकहि तालमे
सन्धानि रहल अछि प्रात।
हेंजक हेंजक मनुक्ख
एकहि देशमे, एकहि नीति पर
अलगल-अलगल
फराक रीति ओ अवसर लेल
बिमछल-बिदकल
चाँछि रहल’छि तकरार
संभव नहि होएत प्रात।
कारी सागरमे डूबि गेल
सुरूज-किरिन
पसरल जाइछ अन्हार
अन्हार ! आदिम अन्हार !!
देखब हम ओही दिन