काल पुत्र का वक्तव्य / शलभ श्रीराम सिंह
ओ शिखादेही !
मेरे पीछे चलने का अर्थ कुछ भी नहीं है !
मैं कुहासे में चीखती
एक नदी को समर्पित हूँ !
अभी-अभी
इधर से गया है
कोई अकालग्रस्त देश ।
कई उजड़े नगर-ग्रामों को घसीटता
कटे हाथों वाली
किसी रक्त नहाई गली के पीछे
रह गया है
एक अनचीन्हा भविष्यत !
लौह अश्वों की वल्गा थामे
इधर ही आ रहा है एक युग !
सोने की आँखों वाला!
भयानक अट्टहास करता -
इधर ही आ रहा है !
उसके रथचक्र
इस अचीन्हें शिशु भविष्यत को
रौंद डालेंगे !
मैं काल पुत्र हूँ !
क्रिया का प्रहरी !
प्रस्तुत हूँ यहाँ युद्ध के लिए !
भविष्य-हत्याकाण्ड की पुनरावृत्ति’शुभ है !
मास्तिष्किक स्नायु-तंतुओं के बंधन से
समय को मुक्त कर दो !
एकान्त-अन्वेषण की उपलब्धि
केवल पश्चाताप है !
जाओ !
लौट जाओ !
ओ शिखादेही !
मेरे पीछे चलने का अर्थ
कुछ भी नहीं है !
मैं कुहासे में चीखती नदी को
समर्पित हूँ !
युद्ध के लिए प्रस्तुत हूँ !
(1964)