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काळ रो कबन्ध / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
देख’र
गांव रै गौरवें
हाड़क्यां रो
हिमाळो
आया मनै
चेतै
जूनै जुग रा
राकस,
कठै लादै
अबै बो
विसवामितर
ल्यावै जको
मांग’र
दषरथ स्यूं
राम’र लिछामण,
कुण मारै
इण काळ रै
कबन्ध नै
भूख री ताड़का नै ?
गिणै
आंगल्यां पर
बिलखाणी हुयोड़ी
परजा,
कद
जलमसी फेर
राम रो औतार ?