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कितना अच्छा होता तब / रमेश ऋतंभर
Kavita Kosh से
कितना अच्छा होता कि
हम रहते आपस में प्रेम से
नहीं करते झगड़ा-फसाद कभी
रहते सदा आपस में हँसी-खुशी
कितना अच्छा होता कि
हम बाँटते आपस में एक-दूसरे का दुःख
नहीं रहते अपनी दुनिया में मस्त
होते दूसरों के दुःख से दुखी
होते दूसरों के सुख से बहुत खुश
कितना अच्छा होता कि
हम होते हमेशा बच्चे
नहीं होते कभी बङे
होती हमारी अपनी दुनिया
होता जहाँ सिर्फ़ प्रेम
कितना अच्छा होता तब...
सुन्दर कितनी होती तब दुनिया हमारी दोस्तों!