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कितना खुश था मैं / अनुपम कुमार
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कितना खुश था मैं
अपने पिता के पास
पर वो भी मुझे
संभाल न पाए
और ओह!
माँ! तुम्हें सौंप दिया
तुमने भी मुझे
मात्र नौ महीने रखकर
सौंप दिया अपनी सहेली को
मायावी प्रकृति पहेली को
फिर वहीँ जाना चाहता हूँ
मृत्यु के वाष्पीकरण से
जहाँ से मैं आया था
परमपिता के पास
परन्तु इस क्षणिक जीवन
इसके मिश्रित अनुभव
और मृत्यु के लिये
धन्यवाद् पिता!
धन्यवाद् माँ!
धन्यवाद् प्रकृति!