कितना मुश्किल है खुश रहना / कमलेश द्विवेदी
कितना मुश्किल है ख़ुश रहना हमने यह ख़ुश रहकर जाना।
वे ही उन्नति कर पाते जो
युग-धारा के सँग बहते हैं।
बाकी तो बस बैठे-बैठे
हाथों को मलते रहते हैं।
पर कितना मुश्किल है बहना हमने यह ख़ुद बहकर जाना।
कितना मुश्किल है ख़ुश रहना हमने यह ख़ुश रहकर जाना।
जीवन के दो पहलू-सुख-दुख
इनका आना-जाना कैसा।
सुख में भी दुख छिपा हुआ है
फिर दुख से घबराना कैसा।
पर कितना मुश्किल दुख सहना हमने यह दुख सहकर जाना।
कितना मुश्किल है ख़ुश रहना हमने यह ख़ुश रहकर जाना।
सोच-समझ कर ही हम बोलें
इतना अधिक नियंत्रण कर लें।
कितने झगड़े टल जायेंगे
मौन अगर हम धारण कर लें।
पर कितना मुश्किल चुप रहना हमने यह चुप रहकर जाना।
कितना मुश्किल है ख़ुश रहना हमने यह ख़ुश रहकर जाना।
झूठ बोलना महापाप है
सच कहना अच्छा होता है।
नहीं किसी से वह घबराता
जो बिलकुल सच्चा होता है।
पर कितना मुश्किल सच कहना हमने यह सच कहकर जाना।
कितना मुश्किल है ख़ुश रहना हमने यह ख़ुश रहकर जाना।