कितने बंधु गये उस पार!
और किनारे पर हैं कितने जाने को तैयार
नौका पर चढ़ जाते हैं जो
मुड़कर भी न देखते तट को
कोई कितना भी कातर हो
करता रहे पुकार
विरह अनंत, मिलन दो दिन का
शोक यहाँ करिये किन-किन का!
उड़-उड़ जाता कर का तिनका
आँधी से हर बार
कितने बंधु गये उस पार!
और किनारे पर हैं कितने जाने को तैयार