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कितने रतजागे खर्च हुए / वैभव भारतीय
Kavita Kosh से
कितने रतजागे खर्च हुए
कितने शब्दों ने धरा मौन
तुम आँख खोलकर सोये हो
इस मसले को हल करे कौन?
है निपट निरक्षर दुनिया भी
क्या घटिया सौदा करती है
इक सूर्य-किरण के बदले में
रातों को मैला करती है।
ये काली रातों के क़िस्से
कुछ ख़ास अदा के होते हैं
सब जगने वाले जगते हैं
सब सोने वाले सोते हैं।
मैं रात पकड़ कर बैठा हूँ
तुम बात पकड़ कर सोये हो
मैं अक्षर-अक्षर हँसा बहुत
तुम जिन लफ़्ज़ों पर रोये हो।
कितने रतजागे खर्च हुए
कितने शब्दों ने धारा मौन
तुम आँख खोलकर सोये हो
इस मसले को हल करे कौन?